रविवार, 10 अक्तूबर 2010

बढते भ्रष्टाचार पर तल्ख न्यायालय

दे में बढते भ्रष्टाचार पर इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय तल्ख हो उठा हैं। न्यायालय ने सरकारी तंत्र खास तौर से आयकर,बिक्रीकर व आयकर विभागों में बढते भ्रष्टाचार पर अपनी टिप्पणी दी हैं। न्यायालय ने व्यंग्यातमक शैली में कहा हैं कि सरकार भ्रष्टाचार को वैध क्यों नहीं कर देती हैं। यह टिप्पणी न्यायाधीश मार्कण्डय काटजू और टीसी ठाकुर की खण्डपीठ ने की हैं और कहा हैं कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि देश में भ्रष्टाचार पर कोई नियंत्राण नही हैं। भले ही न्यायालय ने यह टिप्पणी व्यंग्य में की हो। लेकिन देश में फैले बेकाबू भ्रष्टाचार को लेकर उसकी चिंता भी जाहिर हुई हैं। अगर न्यायालय की टिप्पणी को गंभीरता से ले तो उसने कोई गलत नही कहा। एक केबाद सरकारें बदल जाती हैं,लेकिन भ्रष्टाचार का नासूर कम नही हुआ। बिना लिए दिए कोई काम ही नही हो रहा हैं। इसलिए न्यायालय ने कहा कि इसे वैध कर दो। मेरा मानना हैं कि सरकारी कांरिदो की तनख्वाह बंद कर दी जानी चाहिए और किए गए काम के बदले कार्मिक का मेहनताना संबधित पक्ष देना वैध कर देना चाहिए। कार्मिक से तयशुदा प्रतिशत की राशी सरकार वसूल करे। कुछ वैसा ही जैसे जीवन बीमा एंजेसी करती हैं। कुछ राशी जीवन बीमा देता हैं और बाकी कार्मिक द्वारा पूरे किए गए लक्ष्य पर निर्धारित हैं। यानी सरकार को वेतन का भार नही उठाना पडेगा और लक्ष्य पूरे करने के लिए कार्मिक को परिश्रम करना पडेगा और जितना काम करेगा,उतना उसे लाभ भी अर्जित होगा। यह तो मेरा सुझाव हैं। पिढियां खप गई हैं,व्यवस्था परिवर्तन करने को। मुंशी प्रेमचंद के नमक के दारोगा से लेकर आज तक उपरी कमाई बदस्तूर जारी हैं। न्यायालय भी चिंतित हैं,पूरा देश चिंतित हैं। लेकिन दुष्यंत कुमार कह गए हैं कि एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों.........। घोर अंधेरे में मद्धिम प्रकाश की किरण आज भी दिखाई दे रही हैं। आने वाले दिनों में बहुत कुछ होगा। आशावान रहना होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. भ्रष्टाचार ग़रीब लोगों के खीसे से पैसे निकलवाने का ही एक तरीका है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

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  2. aam aadme ki perdao ko aapne uthaya.
    aadme ko heamsha iemandhari she kam kerna hogo

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