बुधवार, 17 नवंबर 2010

आजादी की जंग जारी हैं


श्री अक्षय जैन घर बचाओं.देश बचाओं त्रैमासिक पत्रिका के संपादक हैं। उनका यह लेख वर्ष २०१० के दूसरे अंक में प्रकाशित हुआ है। उसे यहां सारांशतः साभार प्रस्तुत किया जा रहा है।

स देश ने सन् 1857 में आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी और तब से अब तक यह जंग जारी हैं। कहने को भले ही 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया। लेकिन इसके बावजूद लोगों को अपनी असली आजादी के लिए लिए आज भी लडऩा पड़ रहा हैं। आजादी के मायने सिर्फ इतना हुआ कि शासन की ड़ोर खिसककर अग्रेजों की जगह पर भारतीयों के हाथ में आ गई।
हकिकत में अगर यह देश आजाद हो गया हैं,तो फिर आज भी देश में अग्रेजों के रचे कानून क्यों लादे जा रहे हैं? उनकी बनाई शिक्षा निति,कानून व्यवस्था और प्रशासन प्रणाली क्यों जारी हैं? आज भी उनके लगाए गए चुंगी-कर ज्यों के त्यों चल रहे हैं,तो फिर हम मान ले कि देश आजाद हैं?
देश में संसदीय लोकतंत्र की धज्जीया उड़ रही हैं। पॉवरफुल आदमी को यहां सजा नही होती। देश की अदालतों में जितने मुकदमें हैं,वे आने कई बरस-बरसों तक निपटने नहीं हैं। आधे भारतीय आज भी रोटी,कपड़ा और मकान के लिए झूंझ रहे हैं।
माफिया,आंतकवाद,भ्रष्टाचार,आर्थिक अपराध,पुलिस दमन और देश के गद्दारों से भारत को मुक्त कराना आज भी चुनौति बन गया हैं। देश विदेशी कर्ज से दबा हैं और उसे चुकता न कर पाना हमारी विवशता हैं। दरअसल हमारे पास पैसें ही नही हैं।
इसके बावजूद हम मान ले की भारत के लोग इसे सह लेगें। यह गलतफहमी पालने से अब बाज आना होगा। जिस दिन चिनगारी फूटी,बस उस दिन हवा लगते देर हैं।
असली आजादी आज भी बाकी हैं। लोकमान्य तिलक और शहीद भगतसिंह का बताया रास्ता ही स्वराज का रास्ता हैं। स्वदेशी में स्वराज बसा हैं। आत्मनिर्भरता ही स्वराज हैं। भारत की आर्थिक गुलामी के खिलाफ एक नए स्वतंत्रता संग्राम में आपको भूमिका निभानी हैं,यह सुनिश्चित हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ुलामी की मानसिकता को बनाए रखने के लिए अंग्रेज़ों के कानून चलाए रखना ज़रूरी है.

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  2. .

    लोकमान्य तिलक और शहीद भगतसिंह का बताया रास्ता ही स्वराज का रास्ता हैं। स्वदेशी में स्वराज बसा हैं। आत्मनिर्भरता ही स्वराज हैं।

    That's true. It's the only way we can enjoy our freedom.

    .

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